MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

उत्तर -

डेरेनडार्फ के अनुसार, सामाजिक स्तरीकरण सामाजिक व्यवहार के नियंत्रण के सकारात्मक और नकारात्मक नियमनों का एक तात्कालिक परिणाम है। नियमन हमेशा 'वितरणीय प्रस्थिति की श्रेणी व्यवस्था उत्पन्न करते हैं। सब मानव समाजों की विशिष्ट विशेषताओं में, जो उनके लिये आवश्यक है, उनमें स्तरीकरण पाया जाता है एक समाज में एक सत्ता संरचना होती, और उसके द्वारा मानकों और नियमों को स्थापित रखा जाता है एक समाज में एक सत्ता संरचना होती, और उसके द्वारा मानकों और नियमनों को स्थापित रखा जाता है समाज में 'संस्थाकृत शक्ति' होती है। इस प्रकार स्तरीकरण की उत्पत्ति मानक, नियमन और शक्ति की निकटता से जुड़ी हुई तिकड़ी से होती है। सत्ता के सम्बन्ध सदैव आधिपत्यता और अधीनस्थता के सम्बन्ध होते हैं।

स्तरीकरण के बारे में पारसन्स, मार्क्स और वेबर की अवधारणाओं की आलोचनात्मक टिप्पणी के रूप में, स्तरीकरण के बारे में डेरेनडार्फ के विचार बहुत ज्ञानवर्धक और तार्किक दृष्टि से गहन हैं। डेरेनडार्फ के अनुसार, "वर्ग का एक सिद्धान्त जो उत्पादन के साधनों के आधार पर समाज का विभाजन स्वामियों और गैर-स्वामियों में करता है, ऐसे समाज में जैसे ही वैध स्वामित्व और वास्तविक नियंत्रण में अन्तर किया जाता है तो वर्ग के उस सिद्धान्त का विश्लेषणात्मक महत्व समाप्त हो जाता है।" डेरेनडार्फ का मत है कि समाजों में सत्ता के स्थानों (पदों) के विभेदीय वितरण और उनकी संस्थात्मक व्यवस्थाओं द्वारा सामाजिक वर्ग और उनके संघर्ष उत्पन्न होते हैं। इसलिये, उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण, सत्ता का विशिष्ट उदाहरण है। वर्ग सामाजिक संरचना का तत्व है, जिसका निर्धारण सत्ता और उसके वितरण द्वारा होता है। इस प्रकार, वर्ग सामाजिक संघर्ष समूह है, जो कि अनिवार्यतः किसी संयोजित संगठन में सत्ता की कार्यवाही या गैर-कार्यवाही द्वारा निर्धारित होते हैं।

स्तानिसला ओस्सोवस्की की वर्ग की अवधारणा में सामाजिक स्तरीकरण की अवधारणा की एक आलोचनात्मक टिप्पणी दिखाई देती है। ओस्सोवसकी के अनुसार, सामाजिक संरचना में वर्ग अत्यंत व्यापक समूहों के रूप में गठित है। वर्ग विभाजन का सम्बन्ध सामाजिक प्रस्थिति से है, जो विशेषाधिकारों और भेदभावों की व्यवस्था से जुड़ा हुआ है और जिसका निर्धारण जैविकीय कसौटियों से नहीं होता है। एक सामाजिक वर्ग में व्यक्तियों की सदस्यता सापेक्षिक दृष्टि से स्थायी रहती है। ओस्सोवस्की ने जो सुझाया है, वह मार्क्स और वेबर के विचारों से बहुत भिन्न है। ओस्सोवस्की का अभिमत ट्यूमिन और पार्सन्स के दृष्टिकोणों के अधिक निकट है। सामाजिक संरचना को समझने के लिये, ओस्सोवस्की ने 'श्रेणी' की योजना का सुझाव दिया है। श्रेणी वैयक्तिक तौर पर अनुमानित और वस्तुपरकता से मापे हुए पद (स्थान) दोनों को इंगित करती है। ओस्सोवस्की ने श्रेणी को सरल और सम्मिश्रित भागों में विभाजित किया है। आय, धन और सम्पत्ति जैसी वस्तुनिष्ठ कसौटियों पर श्रेणी आधारित है। ये वर्ग विभाजन के आधार हैं, और श्रेणी सम्मिश्रित तब बनती है, जब दो या दो से अधिक बेमेल कसौटियाँ शामिल होती हैं।

स्तरीकरण की परम्परागत अवधारणा की एक अन्य आलोचनात्मक टिप्पणी भी उस मत में है, जिसके अनुसार वर्गों को वैयक्तिक कसौटियाँ और स्तरणों को वस्तुनिष्ठ इकाइयाँ माना जाता है। एक सामाजिक वर्ग एक समूह है, क्योंकि वर्ग श्रेणी (स्थान) व हितों और एक समान दृष्टिकोण के द्वारा समूह वर्ग के बारे में सोचता है। रिचार्ड सेन्टर्स के अनुसार, 'वर्ग' एक 'वैयक्तिक तत्व' है, और 'स्तरण' व्यवसाय, आय, शक्ति, जीवन स्तर, शिक्षा, कार्य बुद्धि आदि वस्तुनिष्ठ आयामों से निर्धारित होता है। वर्ग की प्रकृति वैयक्तिक है, क्योंकि वह वर्ग चेतना ( अर्थात् समूह की सदस्यता की भावना) पर निर्भर है। एक व्यक्ति का वर्ग उसकी आत्मा (Ego) का हिस्सा है। वर्ग के बारे में ऐसा दृष्टिकोण बिल्कुल अटपटा लगता है, फिर भी इसके द्वारा वर्ग और स्तरीकरण की मनोवैज्ञानिक व्याख्या का बोध होता है।

सामाजिक स्तरीकरण के विषय में डाहरेडोर्फ के मत से मेल रखता हुआ अभिमत जरहार्ड लेन्सकी ने प्रस्तुत किया है। ट्यूमिन और पारसन्स के दृष्टिकोणों के विपरीत, लेन्सकी ने सामाजिक स्तरीकरण के परिणामों के बजाय इसके कारणों पर बल दिया है। लेन्सकी का ध्यान प्रतिष्ठा के बजाय शक्ति और विशेषाधिकार पर है। मानव समाजों में सामाजिक स्तरीकरण और विपरीत प्रक्रिया में अन्तर नहीं है, दोनों एक समान हैं। स्तरीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जो मूल्य (पदार्थ, वस्तुयें और साधन ) कम उपलब्ध हैं, उनका वितरण एक प्रमुख प्रघटना के रूप में किया जाता है।

सामाजिक स्तरीकरण पर उपलब्ध पर साहित्य पर एक नजर डालने से स्पष्ट होता है कि मानव समाज में तीव्र परिवर्तन के कारण 'प्रक्रिया' का तत्व बहुत प्रबल हो गया है। 'पूँजीपतिकरण', 'निजीकरण', 'असर्वहाराकरण', 'प्रस्थिति बेमेल', 'प्रस्थिति पारदर्शीकरण', 'वर्गविहीनता', 'समतावाद', 'अस्तरीकरण', 'पुनः स्तरीकरण', 'भूमण्डलीकरण' आदि धारणाओं से स्तरीकरण के अवधारणाकरण में और अधिक सामग्री एकत्रित हुई है, लेकिन इससे सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित करने का कार्य बहुत कठिन और जटिल भी हुआ है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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